दुर रहकर अपना घर अच्छा लगता है
मुझे अपना ओ छोटा सा शहर अच्छा लगता है
सफर की उस छोटी सी मुलाकत मे मेरे कंधे पे
उस अजनबी का सर अच्छा लगता है
यूं तो उगते हुएसुरज की बात हीकुछ और है
गौर से देखो तो डुबता हुआ सुरज भी किस कदर अच्छा लगता है
दुनिया की भिड सेमन भर जताहै जब ,
तन्हायी के संग कुछ पल रहना अच्छा लगता है
और एक अजनबी जो कभी भूल चुकी ती हमे
अचानक मेरे मोबाइल पे उसका मैसेज अच्छा लगता है
लोग उस दिवाने कोपागल समझने लगे है
मुझे तो मोहबत की कस्ती का हर मुसाफिर अच्छा लगता है
और यूं तो चलनेको हर कोईसाथ चल देता है
पर जब ओ साथ होता है तो हर सफर अच्छा लगता है
और मजबूरिया ही लेजाती है परिन्दो कोपरदेश मे
वर्ना मुझे तो मेरे गांव का पुराना सजर अच्छा लगता है .
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